
अध्ययन से अर्जित ज्ञान से नहीं,
जीवन में मिले सम्मान से नहीं,
मन के अक्षुण्ण अभिमान से नहीं,
विधान के दिये हुए प्रमाण से नहीं;
अंतिम निर्णय में हम उतने ही भले हैं,
जितना जीवन में सच के संग चले हैं ।
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संवेदना की गहन चेतना से नहीं,
दर्शन के सूक्ष्म विवेचना से नहीं,
दिव्य आलोक की संभावना से नहीं,
उत्तुंग शिखर पर पद स्थापना से नहीं;
अज्ञान तिमिर में उतने ही दीप जले हैं,
जितना जीवन में सच के संग चले हैं ।
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बीते हुए पथ के वैभव से नहीं,
अर्जित किये हुए अनुभव से नहीं,
प्राप्त सारी निधियाँ दुर्लभ से नहीं,
साधे हर असम्भव-सम्भव से नहीं;
सार्थकता के साँचे उतना ही ढले हैं,
जितना जीवन में सच के संग चले हैं ।
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भुजाओं में निहित पुरुषार्थ से नहीं,
मन में बसे कुरुक्षेत्र के पार्थ से नहीं,
भ्रम से मुक्ति, या स्पष्ट अर्थ से नहीं,
परलोक के हेतु किये परमार्थ से नहीं;
प्रकाश के पुंज राह में उतने ही जले हैं,
जितना जीवन में सच के संग चले हैं ।
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अन्वेषण के आह्लादों से नहीं,
चिंतन से नहीं, संवादों से नहीं,
त्याग से नहीं, आस्वादों से नहीं,
अर्जित हुए सारे साधुवादों से नहीं;
भाग्य के उतने ही आशीष फले हैं,
जितना जीवन में सच के संग चले हैं ।
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जीवन सुरभित करते हर्ष भी भले,
सत्य और यथार्थ के स्पर्ष भी भले,
सारे पुरस्कार और संघर्ष भी भले,
चेतना व्यापक करते उत्कर्ष भी भले;
हम सार्थकता के रंग उतने ही ढले हैं,
जितना जीवन में सच के संग चले हैं ।
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जीवन में अंतत: हम उतने ही भले हैं,
जितना हम सच के साथ चले हैं ।