
हँसने दो, मुस्कुराने दो,
बिन राग सही, कुछ गाने दो,
हर बीता पल याद आने दो,
खुद को रूठने, मनाने दो,
रोको मत कह जाने दो,
आज एक नयी शुरुआत है।
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संध्या नहीं यह तो प्रभात है।
एक अबोध-सा मन में प्यास है,
कुछ नये का हरदम प्रयास है,
अब दूर नहीं, बस आस पास है,
वह खुशी जिसकी तलाश है।
संशय नहीं, पूरा विश्वास है,
धैर्य माँगती हर अंधेरी रात है।
संध्या नहीं यह तो प्रभात है।
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उलझा जो था सुलझ रहा है,
खुली गाँठ, अब बैर कहाँ है,
कुछ दूर सही पर दीप जला है,
मन के अंदर शंख बजा है,
सार्थक सारे बीते क्षण यदि,
तू अविचल सदा अपने साथ है।
संध्या नहीं यह तो प्रभात है।
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कर्तव्य नहीं कंधों पर भारी,
दृग सम, दृढ पग बारी-बारी,
उठते, हो चेतना के आभारी,
जीता विश्वास, विमुखता हारी।
स्वयम् को ही सम्मोहित करती,
संवेदना यह कितनी अभिजात है।
संध्या नहीं यह तो प्रभात है।
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जीवन का कोई पर्याय नहीं है,
कोई अर्थहीन अध्याय नहीं है,
अप्रत्याशित, पर अन्याय नहीं है,
स्वयम अर्थ, अभिप्राय यही है।
घुले मिले संकाय सभी हैं,
स्वेद-अश्रु-हास का पारिजात है।
संध्या नहीं यह तो प्रभात है।