
दर्द जब कुछ बुझने लगता है,
जख्म पुराने पड़ पर जाते हैं,
बीते हादसों के नये मतलब,
सीने में उभरते नजर आते हैं।
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फिर समझ में आता है,
कि क्यों सदियों से कहा जाता है,
कि वक्त सबसे बड़ा मलहम,
सर पे हाथ रख बाप-सा सहलाता है।
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हादसों के नये मतलब,
खुद पर रहम करने से दूर करता है,
और अपना चेहरा एक साफ आईने में,
देखने को मजबूर करता है।
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बात बहुत दीगर-सी है,
फर्क, पर इससे बहुत बड़ा पड़ता है,
सच बेहतर दिखाई दे तो,
दिल का जहर कम असर करता है।
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अपनी शहादत का गुमान थोड़ा कम होता है,
औरों की सच्चाई नजर आने लगती है,
जिन वाकयों पर शक के बादल छाये थे,
उनमें छुपी अच्छाई नजर आने लगती है।
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थोड़ा और हल्का होकर,
दर्द जब आम-सा और गैर-रूमानी हो जाता है,
दर्द के पीछे छिपकर बैठा अपना चेहरा,
नहीं अब उतना मासूम नजर आता है।
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जख्मों पर कशीदाकारी,
और दर्द पर खूबसूरत नज्म लिखना,
बड़ा पुराना चलन है,
दर्द को बड़ दिखाना और दर्द से बड़ा दिखना।
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जख्म तुम्हारे हैं और दर्द भी तुम्हारा है,
उन्हें भी धूप और हवा चाहिये,
क्या कीमत जमाने से वसूलोगे उनकी,
बता पाओगे कि तम्हें क्या चाहिये।
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दरअसल ये कुछ निशान हैं,
जो जिन्दगी ने तेरे नाम किये हैं,
सम्हाल के रखो उन्हें,
ये तुम्हारी अंधेरी राह के टिमटिमाते दीये हैं।