
यूँ तो बहुत सारी बातें करता है,
मेरा अकेलापन मुझसे,
पर कभी-कभी चुपचाप बैठ जाता है,
धीरे से आकर मेरे बगल में।
हम घंटों बैठे रहते हैं,
ऐसे ही चुपचाप,
न उसे ऊब होती है,
न मुझे ग्लानि या पश्चाताप।
कोई ललक नहीं बहुत करीब होने की,
हम आराम से अगल बगल बैठते हैं,
और कोई परहेज नहीं एक-दूसरे से,
तो कभी-कभी हमारे कंधे छू लेते हैं,
ये छुअन हमदोनों को,
थोड़ा और बेफिक्र कर देती हैं,
एक अपनापन भरे तसल्ली से भर देती हैं।
कुछ कहती नहीं,
पर हम दोनो को और करीब कर देती हैं।
मेरे बहुत सारे चाहनेवाले,
कई बार, उसमें और मुझमें,
फर्क नहीं कर पाते हैं।
मेरी जगह उससे ही बातें कर जाते हैं।
मुझे अच्छा ही लगता है,
कि चलो, मेरे अकेलेपन को मिला कोई,
दो बातें करने वाला।
खुशी यह जान कर भी होती है,
मेरा खैरख्वाह उसे थोड़ा खोया-खोया पाता है,
और ढेर सारा प्यार लुटाता जाता है।
सच कहूँ तो बड़ी खुशी होती जब भी,
ऐसा होता नजर आता है।
गफलत से भी मिले तो,
प्यार किसे नहीं भाता है।
हम सूनी राहों पर चलते,
और भीड़ से गुजरते,
साथ-साथ ही रहते हैं,
पर जब भी कभी उससे दूर हो कर,
औरों में उलझ जाता हूँ,
वह एक कोने में छुप कर,
तब तक करता है इंतजार,
जबतक मैं फिर से बुला ना लूँ एकबार।
पर ऐसे में भी वह कभी,
मुझ से नाराज नहीं होता,
बल्कि मुस्कुरा कर कहता है,
मैं समझता हूँ यार।
नहीं, वह मेरी परछाई नहीं है,
क्योंकि घुप्प अंधेरे में भी,
वह मेरे साथ होता है,
और रौशनी के बदलने पर,
अपना कद नहीं बदलता है।
बड़े सुकून की बात है कि,
दोनों में से किसीकी भी कोई मजबूरी नहीं है।
हम दोनों के होने के लिये,
कुछ भी और जरूरी नहीं है।
कुछ लोग मुझसे,
इसकी वजह से खफा हो जाते हैं,
अगर समझाऊँ तो,
नाराज अक्सरहा हो जाते हैं।
पर मुझे ये बातें चुभती नहीं,
इन्हें हँसकर टाल सकता हूँ।
बस मुस्कुराता हूँ,
और अपने इस हमसफर का खयाल रखता हूँ।
क्यों कि मैं जानता हूँ
अकेलापन बीच की नहीं,
घर की दीवार है,
सूनेपन की जलन नहीं,
मन में बसा प्यार है।
मुझसे होती मेरी पहचान है,
हर जुनून में मेरा निगहबान है।
नामुमकिन की हद तक सच्चा है,
मेरे मन में पलता हुआ बच्चा है।
हर पल का हमसफर है,
मेरी भटकती राहों का रहबर है।
मुझे मेरे सफर में कभी रोकता नहीं है,
अपने मन की करूँ तो टोकता नहीं है।
सही इरादों से कभी दूर नहीं करता है,
डर कर समझौता करने को मजबूर नहीं करता है।