कितना चले हम

Photo by Rahul Pandit on Pexels.com

दो हाथ अगर ढँक लें,

फिर फर्क नहीं पड़ता कि तूफान कितना बड़ा है,

लौ जलता रहता है।

आस्था अगर स्थिर हो,

फिर फर्क नहीं पड़ता कि समक्ष कौन खड़ा है,

जीवन चलता रहता है।

यह नहीं कि कहाँ से शुरू हुए हम,

बात होनी चाहिये कि कितना चले हम,

यही रास्ता, यही मंजिल है।

यह नहीं कि कितना पा लिया है,

दे क्या पाये, कितना उठे देने के पहले हम?

यही जिन्दगी का हासिल है।

कितने हमारे पीछे चले,

कुछ भी नहीं करता है साबित कभी,

हम उसी जगह पहुँचते हैं।

कितनों के साथ चले हम,

कितनों को यह साथ जगत के हित लगी,

सार्थकता इसी को कहते हैं।

बेमानी है बात यह कि,

यहाँ तक पहुँचने में कितनी लड़ाईयाँ लड़ी,

संघर्ष हर जीवन का हिस्सा है।

कितना बल पाते हैं हमसे,

जो आज लड़ रहे हैं कल के लिये हर घड़ी

बस उतना ही है हमारा किस्सा है।

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