
क्या बीत गया, क्या बचा रहा,
क्या गुजर गया, क्या ठहर गया,
पाषाण बहती धार का,
यह सोचता आठों पहर रहा।
आभा पहली किरणों का,
शीत, शांत, सघन विश्वास,
रक्त रंजित अरुणिमा,
बल तन का, ऊर्जा और प्रकाश।
ढलती प्रहरें, आकलन दिवस का,
कल के संघर्ष हेतु शक्ति संचयन,
अंधकार, उत्सर्जन कलुष का,
कल का प्रभात हो एक नवजीवन।
स्पर्श काया पर स्नेहिल जल का,
लहरों के कलरव, उच्छवास,
स्तब्ध काल, संगीत पवन का,
सम्मोहन भरता अनायास।
रुद्ध प्रवाह और जल आप्लावन,
त्वरित शिलाओं के आघात,
किसी प्रयोजन से विस्थापन,
निर्वासन का कटु संताप।
होना तो फिर भी होना है,
बाकी सब इसके विम्ब विधान,
अमृत, गरल व्यापक और विद्यमान
मध्य में जीवन प्रत्यक्ष प्रमाण।