
सुबह उठा तो आँखें भरी हुई थी,
आदतन तबीयत थोडी डरी हुई थी,
पर ना कोई चुभन,
ना कोई तल्खी,
डरी भले ही,
पर तबीयत हल्की-हल्की,
सुकून में भी हैरान,
मन बार बार पूछता रहा,
एक दिलफरेब सपने-सा,
यह जो हुआ, कैसे हुआ?
शुक्रगुजार यह दिल बेचारा,
ढूँढ ढूँढ कर थक थक हारा,
किन परतों में, किस कोने में,
क्या होने, क्या ना होने में ,
छुपा हुआ कुछ है जादू-सा,
जिसने इस सुबह को,
एक नूर से नहला दिया,
मेरे वजूद को इतना बड़ा बना दिया?
बहुत टटोला,
यादों की सारी गिरहों को खोला,
बीते हर लम्हे का लेखा जोखा,
दे गया धोखा।
इससे पहले कि यह एहसास
कमजोर पड़ जाता,
पूरा जेहन में
आज के खून-पसीने का असर भर आता,
कहीं यादों के तार जुड़े,
ठहरे घने बादल के बीच,
एक धारदार बिजली चमक उठी,
सपनो की, सपनो-सी हर बात झलक उठी।
एक अजनबी-सा शख्स मेरे पास आया था,
करीब आकर हल्के से मुस्कुराया था,
हल्के से मेरे कंधे पर रखकर हाथ,
मुझे अपना कहा था।
फिर कहीं वह चला गया।
उसकी आँखों की नमी
उतर आयी मेरी आँखों में,
बड़े सुकून से सोया होऊँगा इसके बाद।
बाकी सब भूल गया पर,
अब तक ताजा है जहन में,
इस मुलाकात का स्वाद।