तल्खियों को बसएक शाम की जरूरत है।
हमें तो शिकायतों से भी मुहब्बत है।
ये शोखियाँ, ये कहकहे,
कितने किस्से अधकहे,
ये हल्की-हल्की बेखुदी,
यकीनन,
जिन्दगी बड़ी खूबसूरत है।
तल्खियों को बसएक शाम की जरूरत है।
हमें तो शिकायतों से भी मुहब्बत है।
ये शोखियाँ, ये कहकहे,
कितने किस्से अधकहे,
ये हल्की-हल्की बेखुदी,
यकीनन,
जिन्दगी बड़ी खूबसूरत है।
प्रतिरोध अगर न कहीं पड़े,
पौरुष अगर न कहीं अड़े,
तो बल कोइ कहाँ लगायेगा?
शून्य से लड़ क्या पायेगा?
आँखों में यदि पानी न हो,
पड़ पीड़ा पहचानी न हो,
दिन रात बीतते जायेंगे
क्या यह जीवन कहलायेगा?
या शून्य ही शून्य रह जायेगा?
भाव निखर।
हो चिरंतन, कर मुखर।
रह सरल, तरल, सुलझ सँवर।
अमृत नहीं, बस ज्ञान मृत्यु का;
सहज प्रेम, स्पष्ट शत्रुता;
ऐसी ही सीधी बातों का मुझ पर जादू कर।
भाव निखर।
छोटे-छोटे सुख इतने छोटे क्यों हो गये?
दूर खड़े हो गये हम क्यौं पहाड़-से?
एक-से पर अलग-अलग तने देवदार-से?
कि उतरी परी आसमान से तो सर भी न झुका सके हम।
धड़कता है कुछ हमारे सीने में भी
इतना तक न बता सके हम।
बने तो हम खरे थे
खोटे क्यौं हो गये?
छोटे-छोटे सुख
इतने छोटे क्यौं हो गये?