यह कैसा वैराग्य है बंधु यह कैसा मधुमास,
होठों लगा हो मधु का प्याल गले लगी हो प्यास।
कोलाहल और नीरवता दोनो ही मुझको प्यारे हैं,
एक है मेरे दिल की धड़कन एक मन का विश्वास।
तिनका-तिनका बुना बसेरा पर झंझा से आक्रांत नहीं,
निशचल रहा निश्छल मन मेरा जब पवनबहे उनचास।
पाने का खोने का कुछ फर्क नहीं अब मेरे मनमें
रेत कण-कण रहा फिसलता पर बांध लिया आकाश।