सपने

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सपने पूरे होते हैं,

शायद हजारों में एक के,

कोई करे शिकायत या शुक्रिया,

नहीं चलता पता,

और समय बीत जाता है देखते-देखते ।

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सपने यदि सब पूरे हो जाते,

तो निश्चय सपने नहीं कहलाते,

फिर ये बंद पलकों में नहीं उगते,

खुली आँखों में बेचैनी बन बस नहीं जाते ।

.

अधूरे सपने भी सपने ही होते हैं,

टूटे सपने भी अपनी कहानी नहीं खोते हैं

जब जीने कोई बहाना नहीं मिलता,

खयालों का कोई खजाना नहीं मिलता,

मन में नयी सम्भावना के बीज बोते हैं ।

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सपने स्पंदन देते हैं, तरंग देते हैं,

एकरस जिन्दगी में अनगिनत रंग देते है,

सपने गति देते हैं और गति को दिशा देते हैं,

चारों तरफ पसरी उदासीनता में जीजिविषा देते हैं ।

मन को देह की सीमाओं से बढ़ कर प्राण देते हैं,

तर्क और शास्त्रों से भी सूक्ष्म ज्ञान देते हैं,

और कई बार अप्रत्याशित भूमिका निभाते हैं,

अर्थहीनता में जीवन का उद्येश्य बन जाते हैं ।

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सपने कभी निराश नहीं करते,

हमेशा जोड़ते हैं, ह्रास नहीं करते,

पुराने होकर भी पुरातनता पर विश्वास नहीं करते,

चिर नवीन होते हैं,

नहीं किसी के अधीन होते हैं,

हर किसी के हजारों सपनों में,

एक तो जरूर पूरा होता है,

कि वह जब चाहे सपने देख सकता है,

कुछ देने का वह दम्भ नहीं भरते,

कभी किसी का सपने देखने का अधिकार नहीं हरते ।

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