तेरा प्रकाश भी चाहिये        

 

Photo by Tomas Anunziata on Pexels.com

जो किया काफी नहीं, अब कुछ नये प्रयास भी चाहिये,

सूरज जरा मद्धिम है आज, इसे तेरा प्रकाश भी चाहिये

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कहती नहीं पूरी कहानी, फकत ताकत तुम्हारी बाहों की,

चेहरे पर झलकने के लिये, मन में विश्वास भी चाहिये ।

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आँखों के खुलने से पहले, एक झोंका छू कर कह गयी,

बहुत हुआ दुहराना, होना हर कुछ दिन खास भी चाहिये ।

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दूर तक नहीं दिखा कोई संग चलने वाला तो मन ने कहा,

एक नयी ऊर्जा के लिये, कभी होना बेआस भी चाहिये ।

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दुनियाँ को बदलने की जिद है खूब वाजिव अपनी जगह,

दूसरों के आँसू पी ले, दिल में एक ऐसी प्यास भी चाहिये ।

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गम की इंतहा क्या खूब उतर आती है हमारे चेहरों पर,

उदास ना कर दे फूलों को, मन इतना ही उदास भी चाहिये ।

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महज ढूँढने की नहीं, खुशी गढ़ते रहने की चीज है यारों,

चाहे जैसे भी जगायें, मन में खिलता हुलास भी चाहिये ।

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और थोड़ी कोशिश हो जरूरी अक्सर सच ऐसा ही होता है,

पर चाहना गलत है कि थोड़ा कम ऊँचा आकाश भी चाहिये ।

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खूबसूरती एक की दूसरे से जुड़ती है, कभी टकराती नहीं

हरी दूब काफी नहीं, नजरों को अमलतास भी चाहिये ।

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एक ही तरफ हो तो अपनी ही करवट भी चुभने लगती है,

पीड़ा की करुणा सही, स्वच्छंद मन का विलास भी चाहिये ।

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थोड़ा ढीला अपने आपको छोड़ भी दिया कर भला होगा,

कभी-कभी बनफूलों-सा, होता कुछ अनायास भी चाहिये ।

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