
धूप का धीरे-धीरे कम होना,
उजाले का क्रमश: मध्यम होना,
गहराता मन का कोना-कोना;
थकी नसों में शीतलता जगती,
शामें हैं इतनी अच्छी लगती,
इसलिये कि तय है दीया जलेगा,
एक और उजाला साथ चलेगा ।
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अंतरिक्ष के तारों-से झिलमिल,
माया रचे दीप अंधकार से मिल,
भयभीत नहीं, पलकें हों स्वप्निल;
स्वागत बाँह पसारे रात का,
निमंत्रण स्वीकार इस अज्ञात का,
अंधकार अब नहीं छलेगा ।
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जो बाधाओं से जूझ प्राप्त हो,
साध चित्त के भय को, भ्रांति को,
जन्म देता उस चिर सामर्थ्य को;
प्रगट जिससे अंधकार में आशा,
विश्वास जीवन में हर पल बढता-सा,
जब भी हमने कोई दीया बनाया,
जीवन को सत् की ओर बढाया ।
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निविड़तम निशि में भी विश्वास पलेगा,
जो हमने बनाया वह दीया जलेगा ।