बार-बार पीछे मुड़ कर देखा है

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मैं ने बार-बार पीछे मुड़ कर देखा है

,

कभी अपनी यात्रा के आरम्भ का अनुमान लगाने,

कभी बीते पथ को निहारने आत्मीय स्नेह से,

कभी फिर से जीने, बीते क्षण अतिरेक के,

पर अधिकतर अब तक के बीते समय का आभार जताने,

बीते की जटिलता से ही उभरती,

आगे की दिशा-रेखा है ।

 मैं ने बार-बार पीछे मुड़ कर देखा है ।

,

स्पष्ट है,

कि हर उत्कर्ष की यात्रा की भाँति,

इसमें भी बीते बिंदु लगते अभी से नीचे हैं,

प्रतीत होते,

आज के यथार्थ से आँखें मीचे हैं,

परंतु यही तो इस यात्रा का अर्थ है,

इतना सदा सत्य रहेगा,

कि आने वाला कल,

आज के लिये भी ऐसा ही कहेगा,

सच कहूँ तो मुझसे,

रहा नहीं किभी भी वर्तमान का सौंदर्य अनदेखा है।।

मैं ने बार-बार पीछे मुड़ कर देखा है ।

,

पैरों में चुभते शूलों की,

अपने निर्णय के भूलों की,

अपने हाथों हुए विनाश की,

पश्चाताप और गढने के हर प्रयास की,

हर हर्ष-वेदना मुझे स्वीकार है,

अतिशयोक्ति नहीं कि मुझे बेहद उनसे प्यार है,

वे जोड़ते मुझे हैं उस विधा से,

जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि का लेखा है ।

मैं ने बार-बार पीछे मुड़ कर देखा है ।

,

अभी तक आभास हो रहा है जिस आकर्षण का,

सहगामियों की परछाईयोँ से जुड़े स्नेह बंधन का,

जिनकी स्मृति अनायास ही धन्यता से भर देता है,

बीते के गौरव अनायास गौरवान्वित कर देता है,

शीतलता देने में सक्षम आज की हर व्यथा में,

सदा एक सरस अर्थ देता हर संघर्ष की कथा में ।

हर निराशा के पल इन्हीं स्मृतियों साँसों में भर देखा है ।

मैं ने बार-बार पीछे मुड़ कर देखा है ।

,

नियमों की परिधि से अलग हो कर,

संवेग के उत्प्लावन में खो कर,

पूर्णत: निष्काम हो,

शुचिता के बीज बो कर,

देख लिया, और पाया,

बाकी आभूषण हैं, तत्थ्य मात्र यात्रा है ।

यात्रा सार्थक तभी लगी ,

जब पूरी यात्रा से जुड़ कर देखा है ।

मैं ने बार-बार पीछे मुड़ कर देखा है ।

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