
शांत, सुरम्य, जीवंत, मनोरम,
कामना सहज जीवन की हर क्षण,
बसते सदैव हृदय में सभी के,
हों अंतर्चेतना से दूर या पास।
मार्ग अज्ञात, दिशा अनिश्चित,
पर सबके मन विश्वास।
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प्रयाण है तो गति भी होगी,
घर्षण, ताप और क्षति भी होगी,
श्रम से निर्माण कल की समृद्धि,
और विधा संघर्ष की जनमी होगी।
पर भाव इसका हर व्यक्ति के मन में,
अलग-अलग भावार्थ ले जनमे।
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भय, चिंता और दाह कहीं पर,
जीवन का निर्वाह कहीं पर,
सृजन का उल्लास, ओज तो,
कुछ नया पाने की चाह कहीं पर।
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किसी को लगता प्रतिशोध विधि का,
यह जीवन बीते ऋण को चुकाते,
किसी को खेल जुआ का चंचल,
कौतुक हर क्षण दाँव लगाते।
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कहीं भाव बंधन के देता,
मन की सहजता को हर लेता।
तो कहीं जोड़ता एक अवलम्ब से,
शून्यता में उद्देश्य भर देता।
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अवसर दहन का उत्पन्न ताप से,
संभावना संघर्ष से विनाश के,
निश्चय ही कुछ मानव मन में,
जगते और पाले जाते प्रयास से।
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ऋण-धन सब अपने मन है,
दुविधा और द्वन्द्व सनातन है,
किस ओर झुके मन अंतत: तेरा,
शोध है, गणणा है, चिंतन है।
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निर्णय अपना आप कर सको,
है दैवीय उपहार तुम्हारा,
सत्-असत् का मूल्यांकन है,
ईश्वर का दिया अधिकार तुम्हारा।
यही है देवत्व का अंश तुझमें,
दिशा का निर्धारण हरबार तुम्हारा।
वर्डप्रेस पर मैंने जितनों को भी पढ़ा है, बेशक आप सबसे अच्छा लिखते हैं।🙏
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मेरी रचनाओं पर ध्यान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ। अपनी आलोचना और सुझाव भेजते रहें। Regards B. K. Das
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Jarur ! Aapse hamesha Jude rhna chahungi
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बहुत बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ। अपनी आलोचना और सुझाव भेजते रहें। Regards B. K. Das
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