होने का सम्मान

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अस्त है तो उदय भी होगा,

निर्भयता है तो भय भी होगा,

हास-अश्रु, प्रतिशोध-क्षमा,

बंधन-मुक्ति, अभिमान-हीनता,

व्यर्थ और अर्थमय भी होगा,

जीवन है तो क्षय भी होगा।

.

एकाधिकार और भोग की लिप्सा,

मन में उठी अकारण हिंसा,

दबी चिंगारी कहीं सुलगती,

मन को अतिरेकों से भरती,

हैं दग्ध बिन्दु उस अनंत पथ के,

जिस पर अहर्निश हैं हम चलते।

.

इस संघर्ष में, इस जीवनयात्रा में,

कभी घटती कभी बढती मात्रा में,

ये अतिरेक आवेश हैं भरते,

दिशा निर्धारित भी हैं करते,

सहज तत्थ्य बस इतना अविचल,

दग्ध बिन्दु हैं अपने प्रतिफल।

.

निर्माण ऊर्जा चाहता निश्चित,

संघर्ष में दहन-ताप अपरिमित,

चेतना सहज दे सरल ज्ञान एक,

संताप नहीं विकास में बाधक,

जीवन नहीं हैं दग्ध बिन्दु ये,

मात्र इसके ये अवयव होते।

.

आशंका विश्वास को क्षीण ना करे,

आवेश विकास से हीन ना करे,

आशा उच्चतम लक्ष्य की हो पर,

संघर्ष, जब तक शेष हो समर,

हों अंतर्मन में पलते जो भी विपर्यय,

जीतें नित्य, हो नित्य ही अभ्युदय।

.

विसंगतियों के पार है जीवन,

ऋणात्मकता से सहज उन्नयन,

विविधता के अणुओं रचना कर,

सकल संशय से लड़, पार उतर,

संभावनाओं का निर्माण है जीवन,

होने का सम्मान है जीवन।

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