मन के संवाद

Photo by Ben Mack on Pexels.com

अवचेतन में भी जगता है,

हर पल कुछ बुनता रहता है,

इसमें आसन्न पल के लिये स्नेह और अतीत की याद है,

शायद यही मन का अपने से संवाद है।

.

यह सुनता सब कुछ है,

देखता भी, समझता भी है,

जानता है दुनियाँ से अपनी साझेदारी, मानता है सारे ऋण,

और निभाता हर सम्बंध बिना किसी प्रतिवाद है।

शायद यही मन का अपने से संवाद है।

.

तन की पुकार भी सुनता है,

स्वजन की पुकार भी सुनता है,

कुछ लेता नहीं, जो दे सकता देने को सदैव तैय्यार है,

मात्र जीत ही नहीं, उसे स्वीकार हार का भी स्वाद है।

शायद यही मन का अपने से संवाद है।

.

बाध्य नहीं करता, बस कहता है,

पूरी उपेक्षा भी चुपचाप सहता है,

हर दोष अपने ऊपर ले लेता चुपचाप,

और हर स्थिति में संग बिना किसी अपवाद है।

शायद यही मन का अपने से संवाद है।

.

हमारी चिंतन में पलता है,

कभी छाया, कभी प्रतिबिम्ब बन छलता है,

हम कभी उपकार इसके मानते नहीं, पर इसके बिना,

जीने में न कोई उद्देश्य-अर्थ, ना हर्ष या अवसाद है।

शायद यही मन का अपने से संवाद है।

.

बदले में क्या मांगता मन,

सहज आचरण, उन्मुक्त विचरण,

और हम देते उसे अवांछित नियम, अवरोध और बंधन,

चेतना उसी से, और उसे मिलता मात्र विवाद है?

शायद यही मन का अपने से संवाद है।

.

उन्मुक्त रखो, विचरने दो मन को,

सीमाएँ ही तो हैं, उनका अतिक्रमण करने दो,

यही इतिहास का सच, सृष्टि की प्रगति का मूल है,

यह आगंतुक को आमंत्रण, बीते को साधुवाद है।

शायद यही मन का अपने से संवाद है।

Published by

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s