खुशी

Photo by Alexander Grey on Pexels.com

खुशी बाहर कहीं बसती नहीं,

नहीं यह बिधि का लेखा,

जग पड़ती यूँ ही मन में,

कि किसी ने मुस्कुरा कर देखा।

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खुशी खिल उठी,

कि दर्द ने आज छुआ है नरमी से,

और मुँह मोड़ने से पहले,

मेरी आँखों में देखा किसी ने।

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खुशी, साँसोँ में फिर से याद आती,

भूली हुई कोई गंध,

सपनों में फिर से जुड़ते,

निहायत ही भूले बिसरे सम्बंध।

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खुशी, बेवजह साफ करना,

घर का कोई अंधेरा कोना,

एक दीया जलाना, और

बिछुड़े दोस्तों के लिये रोना।

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खुशी, खाली हाथ कोई जाये,

घर से तो बस इतना करना,

मुस्कुरा के उसे पास बिठाना,

और हँसते हुए बिदा करना।

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खुशी, बदहवास भीड़ में शामिल,

अगर कुछ और कर ना सकूँ,

किसी गमगीन को बुलाऊँ,

हाल पूछूँ और गले लगा लूँ।

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खुशी, रोशनी पल भर की,

चमक उठे चीरते बादल को,

तस्वीर याद रहे हरदम,

जैसे हर उलझन का हल हो।

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न कोई सदा, न नगमा कोई,

खामोशी खुद में हो भरी-भरी,

खुशी, ऐसे में ओस की एक बूंद,

गिरे और कह जाये बातें कई।

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खुशी,किसी रात पौ फटते ही,

किसीका एहसास दिल पे छा जाना,

आँखों का नम हो जाना बरबस,

सर का झुक कर, सजदे में आ जाना।

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खुशी, साँसों को महसूस करना,

दिल की आवाज सुनना खामोशी में,

इतना भी अपना होता है कुछ,

खोया रहना इस बात की मदहोशी में।

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