
खुशी बाहर कहीं बसती नहीं,
नहीं यह बिधि का लेखा,
जग पड़ती यूँ ही मन में,
कि किसी ने मुस्कुरा कर देखा।
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खुशी खिल उठी,
कि दर्द ने आज छुआ है नरमी से,
और मुँह मोड़ने से पहले,
मेरी आँखों में देखा किसी ने।
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खुशी, साँसोँ में फिर से याद आती,
भूली हुई कोई गंध,
सपनों में फिर से जुड़ते,
निहायत ही भूले बिसरे सम्बंध।
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खुशी, बेवजह साफ करना,
घर का कोई अंधेरा कोना,
एक दीया जलाना, और
बिछुड़े दोस्तों के लिये रोना।
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खुशी, खाली हाथ कोई जाये,
घर से तो बस इतना करना,
मुस्कुरा के उसे पास बिठाना,
और हँसते हुए बिदा करना।
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खुशी, बदहवास भीड़ में शामिल,
अगर कुछ और कर ना सकूँ,
किसी गमगीन को बुलाऊँ,
हाल पूछूँ और गले लगा लूँ।
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खुशी, रोशनी पल भर की,
चमक उठे चीरते बादल को,
तस्वीर याद रहे हरदम,
जैसे हर उलझन का हल हो।
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न कोई सदा, न नगमा कोई,
खामोशी खुद में हो भरी-भरी,
खुशी, ऐसे में ओस की एक बूंद,
गिरे और कह जाये बातें कई।
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खुशी,किसी रात पौ फटते ही,
किसीका एहसास दिल पे छा जाना,
आँखों का नम हो जाना बरबस,
सर का झुक कर, सजदे में आ जाना।
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खुशी, साँसों को महसूस करना,
दिल की आवाज सुनना खामोशी में,
इतना भी अपना होता है कुछ,
खोया रहना इस बात की मदहोशी में।