
हर जीवन यात्रा के जैसी,
है मेरी जीवन य़ात्रा भी,
अंश उस अनंत यात्रा का,
जो है प्रत्यक्ष पर मायावी।
इसमें धैर्य है, ठहराव है,
है उद्यम, और आपाधापी।
सर पर शीतल हाथ वरद,
तलवों तले जलती चिंगारी।
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हर प्रयास को झुठलाता लेकिन,
जीवन के अर्थ का अभाव है।
पर अंतत:, संतोष सृजन का,
जिजीविषा और सखा भाव है।
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वैर भी है, वैमनस्य भी,
जिज्ञासा, शोध, और प्रतिशोध है,
असीमित गति की इच्छा,
पर परिवर्तन का विरोध है।
सौन्दर्य, सत्य है प्रथम ईष्ट,
अनुरंजन पहली अभिलाषा,
संग ही छल और प्रतिघात भी,
चलती जैसे ज्योति और छाया।
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दिखे सरल पर बहुत जटिल इसमें,
भय और उत्कंठा का प्रभाव है।
पर अंतत:, संतोष सृजन का,
जिजीविषा और सखा भाव है।
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करता अनुभव प्रत्येक क्षण,
चेतना का सहज स्पंदन,
जुड़ा है जीवन सकल सृष्टि से,
अटूट श्रृंखला, अनबूझ बंधन।
पर, नहीं है सुसुप्त यह श्रृंगार,
इच्छा पहुँचती मन के द्वार,
ले आकांक्षाओं के तरंग,
ले नये नियम और नये विचार।
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इस अखण्ड द्वन्द्व का ताप,
देत जीवन को इसका स्वभाव है।
पर अंतत:, संतोष सृजन का,
जिजीविषा और सखा भाव है।
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ढूँढ नहीं, तू अर्थ सृजन कर,
सारे संकेतों का यही भाव है,
मूलत: जीवन संतोष सृजन का,
जिजीविषा और सखा भाव है।