
क्या यायावर को याद रहा?
रास्ते जटिल और टेढे-मेढे,
राह के चुभते पत्थर काँटे,
कुछ चिलचिलाती दोपहरिया,
और कोसों बिखरे सन्नाटे।
कुछ लहूलुहान-से घटना क्रम,
और कुछ अनगढ इतिहास,
खुशियाँ दिखती दूर खड़ी,
पर तृष्णा सदा बहुत ही पास।
थपेड़े खाती सागर में नावें,
और दमतोड़ ऊँचाई पहाड़ों की,
गहरे तिलस्म अंधियारों के,
अनबुझ भाषा चांद-सितारों की।
अपने बूते पर लड़-लड़ कर,
क्या पाया,
बचा क्या इसके बाद रहा?
क्या यायावर को याद रहा?
नर्म दूब वह अपने पथ की,
सुबह की संगी शीतल बयार,
कभी उऋण होने ही ना दे,
सरल प्रेम के अद्भुत उधार।
बिन मांगे आशीष बहुतेरे,
अंधेरों में जल उठती बाती,
वरदान ऐसी निर्भयता की,
हर समर गर्व से चौड़ी छाती।
और बहुत से ऋण हैं बाकी,
बाकी हैं और बहुत उपकार,
इनके बंधन में जग लेकिन,
यायावर का अलग प्रकार।
इन कृपा के दम पर बहुत चला,
पर इनके भार का,
हर गतिरोध तो याद रहा।
क्या यायावर को याद रहा?
यायावर अकृतज्ञ नहीं होता,
आभार सभी के सबसे ऊपर,
पर जतलाने को नहीं रुकेगा,
है तो आखिर एक यायावर।
पाँव के छाले, बेदम साँसें,
नहीं बदले में कुछ भी पाने को,
याद उन्हे वह रखता है,
अगले यायावर को बतलाने को।
यायावर वह भाग मनुज का,
जो सारी वर्जनाएँ छोड़ सके,
नित नये का संधान करे,
बंधनों को सारे तोड़ सके।
जो रुष्ट उनसे, वे हुआ करें,
नहीं रुकना,
उसका अंतिम संवाद रहा।
क्या यायावर को याद रहा?