
मेरे मन में कुछ सपने हैं!
तुम शायद हँसोगे सुनकर,
लगें नहीं तुमको ये सुन्दर,
पर द्वार खोलते आशा के हैं,
उत्तर हर जिज्ञासा के हैं,
स्नेह भाव से सहज बने हैं।
मेरे मन में कुछ सपने हैं!
सूरज जब अपने घर जाये,
हर घर दीया जला कर जाये,
सुलाये अंधेरा बाहों में लेकर,
सवेरे चूम, जगा कर जाये।
समय कभी भी भारी ना हो,
गुजरे तो ऐसे दाग न छोड़े,
कि भरे कभी वे घाव नहीं,
बस दुख के परतों में दबता जाये।
खुशियाँ कभी लुटे न किसीकी,
कोई ठगा न जाये छल से,
चाहे जो भी ले ले बदले में,
हर पल गले लगा के जाये।
न माँगे हिसाब मेरे बोझों का,
उम्र न थके, न मुझे थकाये,
बस संग रहे और चले साथ में,
रोऊँ तो बचपन में ले जाये।
सिर्फ तोड़े ही नहीं पत्थर,
तराशे टुकड़ों को और जोड़े भी,
हाथ देखे अपने छालों को तो,
मुस्कुराये और गर्व से सहलाये।
बहुत दूर निकलने की जल्दी में,
पैर कुछ भी कुचले ना नीचे,
चले इस तरह कि जो पीछे हों,
राह प्रशस्त उनका कर जाये।
सिर्फ शोर ना करे धड़क कर,
रखे जगह कुछ खामोशी की भी,
दिल अपनी लय-तालों से,
हर किसी को गुदगुदाता जाये।
जो भी आये मुझसे मिलने,
हँसता और मुस्कुराता आये,
जब तक चाहे संग रहे,
संग खुशियाँ झोली भर ले जाये।