
हर सुबह जगता उजाला,
हर शाम आसमान में सिंदूर,
टिम-टिम करते तारे सारे,
उतने ही अपने, जितने दूर,
न हँसने पर पाबंदी, न आँसुओं की कमी,
जैसे मुस्कुराते फूलों पर ओस की नमी,
बिन मांगे इतना कुछ दिया।
जिन्दगी तेरा शुक्रिया।
बीते कल के सवाल,
आने वाले कल का खयाल,
कभी न बुझने वाली प्यास,
एक बेहतर कल की तलाश,
कभी आसमान में, कभी मन के अंदर की उड़ान,
कभी एक हो जाते, पंख और प्राण,
ये मैंने हैं पाये, या तेरा है किया?
जिंदगी तेरा शुक्रिया।
मंजिल धुंधली, फिर भी सफर,
किसकी तलाश, क्या आता नजर?
एक-सी दिशाएँ, पर एक को चुनने की बंदिश,
अक्सर लफ्ज रहते मायने से बेखबर,
खुद नहीं जान पाता, यह बात क्या हुई,
जितनी ही शिद्दत, उतनी ही बेखुदी,
मैं खुद ऐसा बना या किसी ने मुझको गढा?
जिंदगी तेरा शुक्रिया।
जो हूँ, होने में, बस लिया ही लिया,
फिर भी सवाल हैं कि मुझे क्या मिला,
क्यों उठते है मन में ऐसे ख़याल,
कोई आदिम उलझन है, या बेमानी-सा कोई गिला,
हक जो माँगता हूँ, किस हक से माँगता हूँ,
कीमत चुकायी है, या इस सवाल से भागता हूँ?
सवालों से चलते रहे कदम से कदम मिला।
ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया।
दोपहर की चिलचिलाती धूप,
जो मेरे और मेरे घर के दर्मयान है,
हर दिन का महासमर,
और मेरे चारों ओर जो कुरुक्षेत्र का मैदान है,
हर पल चुनौतियों से जिंदा रखते मुझको,
मुझे देते मेरी खुद की पहचान हैं?
इनमें जब ढूँढा तो, तुझको पूरा जान गया।
जिन्दगी तेरा शुक्रिया।