
रात ने समेट ली चादर,
बुझा दिये दीये,
किरणों की आहट सुन सकती वह,
सवेरा जरूर ही पास है।
यह उसके मन का विश्वास है।
अंधेरे ने ली करवट,
दूसरी ओर मुँह करके लेटेगा,
उसका मानना है कि उजाले की तरह,
उसकी भी चाहत होगी किसीको,
अलग बात है कि, कहीं भी उसे मिला नहीं,
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण।
शायद इसीलिए अंधेरा बेचैन है,
चिर काल से तृष्णा में हैं उसके प्राण।
सूरज के घोड़ों पर सवार,
उजाला आतुर मन, बार-बार सोचता है,
क्यों रहे ये घोड़े चल इतने मंद-मंद,
नींद तोड़ जग प्रतीक्षा में व्याकुल है,
ऐसा भाग्य कितना विरल है।
किरणें भाव विह्वल हैं।
समय,
समस्त सृष्टि के कथानक बुनता,
चुपचाप निश्चल अवलोकन में,
देख रहा है,
हर अणु है गतिमान, सबकुछ बदल रहा है,
और सब सोचते हैं कि वह चल रहा है;
अस्तित्व का, भावों का, घटनाक्रम का,
हो जैसे एक अनियंत्रित महाभोज रहा है,
जिसमें हर कोई अपना अर्थ खोज रहा है।