
जिन्दगी जब बहलाती है,
थपकियाँ देते हुए हल्के-हल्के सहलाती है,
वह तुमसे प्यार तो करती है,
तुझे तैय्यार भी करती है,
आने वाले कल के लिये,
और उनमें छुपी हलचल के लिये।
जिन्दगी जब एकरसता से चलती है,
न मुड़ती है कहीं, न करवट बदलती है,
देती है एक सुकून का एहसास,
जो कभी खत्म नहीं होती है;
तो शायद कहती है,
कि आगे कोई चुनौती है;
जो कर रही है तुम्हारा इंतजार,
छोड़ो यह खुमार, चलो अब सपनों के पार।
जिन्दगी जब रुकी-रुकी-सी लगती है,
तुम्हारे सजदे में झुकी-झुकी-सी लगती है,
शायद कह रही होती है,
क्यों अपना वजूद खो रहे हो,
क्या है जो समझ नहीं पा रहे,
दिन चढ आया बेसुध सो रहे हो।
जिन्दगी ‘होना’ है,
साँसों के धागे से हर पल बुनती माया है,
वजूद से जुड़ी,
दुनियाँ पर पड़ने वाली हमारी छाया है,
उलझे सवाल नहीं, सुलझाते जवाब नहीं,
सिर्फ हकीकत या सिर्फ ख्वाब नहीं,
जहाँ सारे किनारे मिलते हैं,
यह वह जमीन है,
सब पर भरोसा है, अपने पर यकीन है;
वह सब जो हम समझ नहीं पाते और जो समझ आया है,
जिन्दगी वही है जो हमने खुद को बनाया है।
जिन्दगी सहपाठी है, गुरु है, पाठ है,
उम्मीदों की आखिरी गाँठ है,
सिखाती है, पढाती है,
कभी छोड़ती नहीं,
अंत तक साथ निभाती है,
जब भी लगता है दुहरा रही है खुद को,
अचानक एक नये रंग में आ जाती है।