
चाहे जैसे भी बंधन हों,
जैसी भी हो पराधीनता,
अंतत:, अपनी दिशा चुनने का अधिकार,
हमसे कोई नहीं छीनता।
हम चाहे जो भी कथा गढें,
अपनी वेदना पर चाहे जितनी भी महिमा मढें
हर कल पर आज की छाया है,
जो बोया था कभी, फल उसी का पाया है।
दिशा को चुनने का विकल्प,
होता है मात्र दिशा हीनता।
पहला बंधन, पर जीवन;
दूसरा अर्थहीन और निष्कृय स्वाधीनता।
जो भी पास नहीं होता,
मन उसी में आकर्षण पाता है।
पर चुन सकने का अधिकार तज कर,
मनुष्य जी पाने की संभावना ही हार जाता है।
उद्देश्य जीवन का कहाँ,
ढूढते रहते हैं जीवन की परीधि पर,
उसके मिलने के अवसर जबकि,
होते हैं जीवन में हर पल के अंदर।