
चेतना का सहज विस्तार दिखे तो,
हृदय चिर कृतज्ञ, उदार दिखे तो,
स्वागत में नये विचार दिखें तो,
मानवता का ललित त्यौहार दिखे तो,
प्रेनोन्मुख, उन्नत होता मन।
नत होता मन।
नाम या परिचय ज्ञात नहीं हो,
शत्रु या मित्र आभास नहीं हो,
मात्र करुणा से हो संचालित,
कोई ‘मैं हूँ तुम्हारे साथ’ कहे तो,
आभारी सतत होता मन।
नत होता मन।
भीषण झंझा, निविड़ अंधकार हो,
अंतिम दीये की बुझती लौ को,
हाथ भरे निधियों को तज कर,
हाथों से ढँक कोई बचा सके तो,
हो विभोर, प्रणत होता मन।
नत होता मन।
हो क्या भाषा जन से जन की,
क्या संभव परिभाषा जीवन की?
प्रश्न उठें, पर इससे पहले,
यदि बातें हों बस अपनेपन की,
हृदय सहज, सम्मत होता मन।
नत होता मन।
निर्बल जब निर्भय हो जाये,
बलशाली करुण, सदय हो पाये,
अपनी प्रतिष्ठा से पहले जब,
मन औरों के सम्मान को धाये.
द्रवित भाव शत्-शत् होता मन।
नत होता मन।