समर्पण

Photo by Guillaume Meurice on Pexels.com

भाव समर्पण, जगने से पहले,

मिलने को, सजने से पहले,

थाम अंगुलियाँ लेता है मन,

मन वीणा के बजने से पहले।

अभी-अभी तो प्यास जगी है,

अभी चंचल उल्लास जगा है,

कुसुमित होने लगी भावनाएँ,

स्वाद मधुर, और नया-नया है।

अभी मिलन की बात न करना,

कुछ, जो बिता दे रात, न करना,

फिर से यह ऋतु छाये न छाये,

अभिसार पर, आघात न करना।

असीम लालसा, घोर मुदित मन,

अज्ञात अपेक्षा से पुलकित तन,

परंतु भाव एक कौंधता मन में,

क्या सचमुच प्रस्तुत हूँ प्राणपण?

क्या स्नेह का अंतिम सोपान,

शून्य जहाँ हो जाता अभिमान,

चढ पाया हूँ, दम्भ छोड़ कर,

या यह तर्पण, मात्र शोभा संधान?

जब तक जिज्ञासा प्रश्न रहेंगे,

उन्हें तर्क और ज्ञान चाहिये,

उत्तर कभी अंतिम नहीं होते,

यदि श्रद्धा को प्रमाण चाहिये।

उचित प्रश्न और जिज्ञासा भी है,

यह परंतु समर्पण मार्ग नहीं है,

मूँद नयन जो छवि हो प्रस्तुत,

जिसे हृदय कहे आराध्य वही है।

अति दुर्लभ आराध्य को पाना,

है उससे दुर्लभ भाव समर्पण,

सबसे दुर्लभ प्रस्तुत हो पाना,

बिन संशय, बिन मन के बंधन।

Published by

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s