
राहों की, गुजरगाह की, हर रहगुजर की,
वह शिकायत भी क्या जो हो उम्र भर की।
खफा ख्वाब से, खयाल से और जिन्दगी से,
कोई मंजिल कभी क्या होगी ऐसे सफर की।
अंधेरा अगर है गहरा तो जरूरी कि बातें हों,
सिर्फ हौसले की, ना इधर की ना उधर की।
किस काम का वो आलम बेखयाली का यारों,
जिसमें राह कोई पूछे बस अपने ही घर की।
दिल ढूँढता है कैफियत अगले पड़ाव का, पर
जेहन याद है दिलाता, बातें पिछले सफर की।
कुछ तो हो जिसे तुम मानो और मैं भी मानूँ,
जहाँ पर फर्क नहीं हो कोई, तेरी-मेरी नजर की।
वादा तो बस इतना, चाहता हूँ हर किसी से,
यकीन न डगमगाये, चाहे दुनियाँ लगे बिखरती।
अरमान कुछ बचे नहीं, पर जीने की आरजू है,
ये भी रंगे-जिंदगी है कि हरदम कम है पड़ती।