मनोरथ

Photo by Kaique Rocha on Pexels.com

जीवन रथ था गुजर रहा,

सुगम मार्ग पर समगति सरपट,

रोमांच वेग का,

मन धवल श्वेत था,

था बल सुलभ मन चंचल, नटखट।

पर भोलेपन को प्यार चाहिये,

संरक्षण, स्वीकार चाहिये,

बीते कल के ऋण से मुक्ति,

भविष्य भय से उद्धार चाहिये,

योग क्षेम को अर्थ और ऊर्जा,

विस्त्रित सबल आधार चाहिये।

इन साध्यों के अर्जन में लग,

निर्माण में उस आधार के सजग,

निष्ठा रत था, जान न पाया,

मूल्य चुकाया कैसे और कब,

नये भाव मन में प्रविष्ट हो,

नयी इच्छाओं का कर रहे थे उद्भव।

बनने लगे उद्देश्य नये,

नये कथानक, रहस्य नये,

उचित लगे संचित निधियों का,

बने लक्ष्य, परिदृश्य नये,

नये मनोरथ मन को भाये,

आँखों में पनपे भविष्य नये।

मनोरथ इच्छा-शक्ति प्रणेता,

विचारों को गति और ऊर्जा देता,

पर यह जीवंत, पुष्पित रहने को,

माया की माटी, आकांक्षा जल लेता,

होगा पंक, हों माटी और जल तो,

यह पंक गढ नया अवयव एक देता।

मनोरथ, जीवन में पंक-सा उपजे,

अंकुरण और भू हरित-श्यामल दे,

पर मूल्य चुकाने समरसता का,

थोड़ा ऋण लेता मन चंचल से,

अब भी गति, पर रथ का पहिया,

जा फँसता, मनोरथ के दलदल में।

मन के पंक में फँसता जीवन रथ,

शाश्वत द्वन्द्व है इस संसार का,

जीवन गति का, आदर्श की क्षति का,

आकार, अस्तित्व और निर्विकार का,

हो भिन्न-भिन्न रूपों में उजागर,

रचे समन्वय विचार और व्यवहार का।

जीवन रथ है गुजर रहा,

कठिन मार्ग पर रुक, सम्हाल कर,

बुद्धि, विवेक रत,

चित्त स्थिर, शीष उन्नत,

हर पंक से जूझ, रथ निकाल कर।

Published by

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s