पहले

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दिल के दर्द का एहसास था मुझे, मगर और भी थीं कुछ मुश्किलें,

भरना तो ठीक था आँखों का, बस रुकना था उन्हें छलकने के पहले।

नसों में, लहू में, सीने में और हर्फों मे, शोलों की बातें सबों ने की,

आग तो अच्छी थी वाकई, उनके के अपने घरों में दहकने के पहले।

इन्किलाब की बातें अच्छी किसे नहीं लगती, बंद कमरों के अंदर,

कदम लड़खड़ाते हैं अक्सर, लहू-लुहान गलियों में भटकने के पहले।

अंधेरों से डरते तो रातें गुजरती, किसी कोने में आँखों को मीचे,

तलाशी रौशनी, और स्याह रातों में भी मेरे सब सपने थे रुपहले।

सुन पाओ तो पत्थरों में भी होती है धड़कन, धड़कना बड़ी बात नहीं,

धड़कना उम्र भर और लम्बा सफर है, सोच लो तुम धड़कने के पहले।

कल के कंधों पर चढ कर ही, हम हैं आज पहुँच पाये यहाँ तक,

खामोश परिंदों ने कुछ यूँ कहा खुद से, सुबह में चहकने के पहले।

कितना कुछ कहना रह गया, कितने हैं बाकी शुक्रिया अदा करने को,

मेरी रूह ने हर बार कहा, इन्सानियत के सजदे में सिमटने के पहले।

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