
गा सकूँ, गुनगुना सकूँ,
व्यथित मन बहला सकूँ,
छू सकूँ, सहला सकूँ,
गीत ऐसे दो मुझे।
स्वीकार यदि यह हो तुझे।
जब चाहूँ मैं आ सकूँ,
व्यथा अपनी दिखला सकूँ,
नि:संकोच अश्रु बहा सकूँ,
ले चल उस मंदिर को मुझे।
स्वीकार यदि यह हो तुझे।
ज्ञान और स्वभिमान सब में,
सबके लिये सम्मान सब में,
सबके साँझ विहान हों अपने,
यह स्वप्न बुनने दो मुझे।
स्वीकार यदि यह हो तुझे।
रंग सारे संग रहें मिल,
भावनाएँ सबकी हों शामिल,
वृहत्त लघु को करे न बोझिल,
यह ज्ञान हो सबको, मुझे।
स्वीकार यदि यह हो तुझे।
व्योम न हो उद्विग्न अनिश्चित,
साँसें सम, सौम्य और सुरभित,
ग्रीवा उन्नत, नयन हों सस्मित,
ऐसा जग रचने दो मुझे।
स्वीकार यदि यह हो तुझे।
स्पर्धा यदि हो तो स्वयम से,
विमुख नहीं धर्म से या रण से,
संकल्प शुचिता, संवरण के,
इन स्वप्नों में निष्ठा हो मुझे।
स्वीकार यदि यह हो तुझे।