
पराजय का स्वाद,
मन के विषाद,
संवेदना पर आघात,
हर नियम के अपवाद,
जो मिले नहीं आगंतुक बनकर,
तो,
जीत के उल्लास,
मन के स्मित हास,
चित्त की दृढता के प्रयास,
हर सीमा को लांघने का विश्वास,
कैसे होते इस प्रयाण के सहचर?
मन की सहज जिज्ञासा,
प्रकृति को जानने की पिपासा,
बहुत कुछ बदल पाने की आशा,
सबके लिये स्नेह की भाषा,
जो मिले नहीं आगंतुक बनकर,
तो,
चेतना का विकास,
जुड़े होने का आभास,
सर्जन की सम्भावना में विश्वास,
समरसता में जीने का प्रयास,
कैसे होते इस प्रयाण के सहचर?
अंतर्मन से कहना-सुनना,
अपना एक अंतरिक्ष बुनना,
रख कर सिंचित, जड़ से जुड़ना,
जो राह कठिन हो, उसको चुनना,
जो मिले नहीं आगंतुक बनकर,
तो,
उदय अध्यात्म का अंधकार में,
अस्तित्व भान तमस के विकार में,
विश्वास अपने मूलाधार में,
रचना में, सतत विकास के अधिकार में,
कैसे होते इस प्रयाण के सहचर?