
शोक में, श्रृंगार में भी,
वर्जना, मनुहार में भी,
यश-अपयश के पंक में,
और जीत में भी, हार में भी,
चित्त यदि स्थिर रहे तो,
विवेक उचित है यदि कहे तो,
जीवन गति की दिशा सही है।
दिवस अर्थमय, निशा सही है।
अंधकूप हो, या प्रकाश हो,
कौंधती शंका, या दृढ प्रयास हो,
नीरव लय या गीत नैसर्गिक,
शुष्क छंद या अनुप्रास हो,
मन के भाव यदि दृढ करें पग,
तन को स्फूर्त, हर अंग सजग,
तो चेतना सच में फलीभूत हुआ है।
सत्य, शिव को आहूत हुआ है।
गुरु प्राप्य है, ज्ञान प्राप्य है,
बल, कौशल, विधान प्राप्य है,
कर्म परंतु करने से होता,
समय मात्र वर्तमान प्राप्य है।
सम्मुख क्षण यदि लक्ष्य समर्पित,
करे प्रयोजन समष्टि के हित,
यात्रा अब तक निश्छल रही है।
आहूति तुम्हारी सफल रही है।