
विचित्र व्यामोह,
हल्कापन अच्छा लगता है,
जब तक देता है,
स्वच्छंदता से हलके-हलके तैरने की क्षमता,
और लगने लगता अपना अंतरिक्ष का हर कोना;
पर जिस क्षण लालसा जगती है गुरुत्व की,
जैसे ही छूता है अस्तित्व की
भारहीनता का आभास,
अनायास,
भार का महत्व,
समझ में आने लगता है।
गुरुत्व के प्रति आदर,
मन में छाने लगता है।
असम्भव-से दिखते,
विपरीत तत्वों के समन्वय में ही,
सम्भवतः छिपे प्राण और जीवन हैं।
वरना,
प्रकृति में बिछे चरम शीत,
और विद्यमान अनन्त ताप बीच,
संभावनाओं से भी क्षीण,
एक अति संकीर्ण छोटी-सी पट्टी पर,
असम्भव-सा संतुलन बनाये,
आदि काल निरंतर चलते,
कैसे ये मानवता के चरण हैं?
सारी विषमताएँ द्वितीय हैं,
मोह के बंधन, अर्जन के भ्रम,
मानचित्र की रेखाएँ, ऊँचे-नीचे के क्रम,
मान्यता की सीमाएं द्वितीय हैं,
संयोजन उचित सम्भावनाओं का,
समन्वय विरोधाभासों का प्रथम है।
अतिरेक का सम्मोहन प्रचंड हो भले ही,
जीवन का मार्ग मध्यम है।