
शनै:-शनै:, शीतल-शीतल,
कभी भाव, कभी उसके प्रतिफल,
जाये वेदना या करुणा के,
नयन संचित होते अश्रुजल।
संघनित चेतना के तुहिन कण,
द्रवित पाषाण से भरते नयन,
जब सब कुछ समापन के समीप,
नया अंकुरण, नव उज्जीवन।
युगों की संचित निधियाँ मन की,
कोमलतम भावनाएँ जीवन की,
क्षण भर में दे दे जैसे कोई,
अंतिम संवेदना समर्पण की।
सूखे आनन पर रेखाचित्र-से,
अर्थ विशद पर रंग में हलके,
छलके जब भी बंध तोड़ कर,
कितने इतिहास पटल पर झलके।
अन्वेषण की कथा शेष है,
उपजी इससे व्यथा शेष है,
भर जो आये एकांत में अकारण,
ज्ञात नहीं क्यों, पर विशेष है।