
जो वृक्ष आसमान में पंख पसारते हैं,
ऊपर उठते हैं, दूर तक निहारते हैं,
छाया देते हैं, शीतलता देते हैं,
कुछ लेते नहीं, मात्र देना स्वीकारते हैं,
होने के तथ्यों को और जीवन के सत्यों को,
मन में विचारते हैं,
उनकी जड़ें भी उसी मिट्टी में गड़ी होती हैं।
निस्पृह भाव भार उठाती हैं,
और किसी भी और पेड़ की तरह,
बिना किसी दम्भ के किये उसे खड़ी होती हैं।
जड़ से लिपटी मिट्टी वही होती है,
जड़ के जमीन से जुड़ने का भाव खास होता है।
ऊपर उठने को आकाश का आकर्षण नहीं,
जरूरी मन का विश्वास होता है।
ऊपर के विस्तार को बहुधा,
सामर्थ्य और बल से जोड़ा जाता है,
पर इन का निर्माण जड़ से पहुँचने वाली,
सूक्ष्म कोशिकाओं से ही हो पाता है।
अपनी टहनियों को सम्हालना,
अपनी जड़ों से कृतज्ञता का जुड़ाव
वृक्षों में और मानव मे भी,
भरता है, निर्लिप्त सदाशयता के भाव।
अभिप्राय जरूरी है,
संवेदनाएँ जरूरी है,
कल से जुड़ाव जरूरी है,
और कल की संभावनाएँ जरूरी हें।