
सारी भावनाओं को, सारी संवेदनाओं को,
सारी इच्छाओं को, सारी चिंतन धाराओं को,
अनुभूति के एक सतह पर,
मैंने साथ-साथ चलते देखा है।
भिन्न रंग और भिन्न पकृति के दिखते,
लेकिन अंततः,
मन के अंतरिक्ष में सबको
एक बिंदु पर मिलते देखा है।
सारे दुखों को, सारे सुखों को,
सारी सुन्दरता को, सारे पराक्रम को,
अस्तित्व के एक पड़ाव पर,
मैंनें एक साथ चलते देखा है,
कुछ को आँखों के सामने खुल कर,
कुछ को अगले मोड़ के पार छुप कर,
घर-आंगन में पलते देखा है।
अलग-अलग पहचान बनाये,
आगे पीछे दौड़ लगाते,
हठात कहीं बरबस उलझाते,
कहीं-कहीं पर घात लगाये,
और कहीं षडयंत्र रचाते,
कहीं भँवरों में वृताकार,
पर अंत में पग आगे बढाते,
उस ओर जहाँ खिंची
मानव की नियति रेखा है।
मैंने देखा है,
जीवन के महासमर अथाह को,
मानव चेतना के महाप्रवाह को,
समतल वितानों से,
अंतहीन विवर गर्तों से,
और उतुंग पर्वत शिखरों से,
जूझते लड़ते और निर्बाध गुजरते,
होकर चतुर्दिक निर्वाह के जंजाल से,
दिखते अंतहीन भ्रमजाल से,
बिना किसी संकोच के विचरते,
और मानवता के वक्षस्थल-सा,
साँसों के संग उगते ढलते देखा है।
आदि काल से संहार-सृजन को,
द्वेष-प्रेम और निंदा-वंदन को
मैंने साथ-साथ चलते देखा है।