हृदय कलश

Photo by Pixabay on Pexels.com

हृदय कलश कुछ रीत गया है,

तनिक उसे अब भरने दो,

कुछ और समाये इसके पहले,

स्वीकार मुझे यह करने दो।

बड़े जतन से एक हिस्सा इसका,

हरदम खाली रखता हूँ,

यदि सुपात्र न कोई मिले तो,

किसी आगंतुक से बाँटा करता हूँ।

यदि भरा यह रहे लबालब,

कुछ नया न कभी आ पायेगा,

द्रव संग्रहित वृथा रहेगा,

निष्प्रयोजन विघटित हो जायेगा।

कितना भी कुछ हो मूल्यवान,

बिन परिवर्तन स्थूल, हीनप्राण,

जीवन तक ना पहुँचे तो अमृत कलश भी

मात्र एक घट, एक उपादान।

हृदय कलश, अंतर्मन घट मेरा,

संचित करे सारे मधु कृतज्ञ हो,

कर दे शीतल प्यास किसी की,

दे नमीं जहाँ आवश्यक हो।

मोह न हो बाधक देने में,

जहाँ हों ग्राहक, सबकुछ दे दे,

भर ले फिर से सुधा संजीवनी,

यह यायावर कुछ ऐसे खेले।

यह क्रीड़ा सीमा विहीन हो,

उन्मुक्त पात्रता के प्रभाव से,

जिससे, जब भी मिले नव्यता,

ग्रहण करे नत, श्रद्धा भाव से।

व्यर्थ उद्यम का दोष न दो,

जो कर सकता हूँ करने दो।

हृदय कलश कुछ रीत गया है,

तनिक उसे अब भरने दो।

Published by

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s