
तलाश उस तरंग की जो डूबने दे, उतराने दे,
झूमने दे, इतराने दे,
चाहूँ तो थमने दे, चाहूँ तो लहराने दे,
साथ ही अपने पर विश्वास कर पाने दे
कि मैं जुड़ा हुआ हूँ हर पल,
अपनी मूल चेतना से,
और सक्षम हूँ अपनी निजता को सम्हाल पाने में।
तलाश उस निर्बाध गति की,
जो बिना सवालों के जाने दे,
चाहूँ तो फिर लौट कर आने दे,
क्षितिज के पार,
और फिर उसके भी पार,
बार-बार,
स्वाद, सुगंध और संस्कृति लाने दे,
कोई प्रतिबद्धता नहीं,
कोई बंधन नहीं उन्हे त्यागने या अपनाने के,
पर मुझे चरम उन्मुक्तता को,
एक बार छू पाने दे।
तलाश उस क्षमता की,
जो अपने सम्मोहन के पार जाने दे,
जहाँ कोई नहीं गया एक बार जाने दे,
विश्वास और उद्देश्य दे,
हारे संबल को बार-बार प्रबल कर पाने दे,
दुर्गम हिम शिखरों पर चढ़ जाने दे,
सागर के गर्भ से अमृत कलश ले आने दे,
सृष्टि को मनोरम बनाने के,
हर युक्ति को सहज हो आजमाने दे।
तलाश प्राणशक्ति के नियामक प्रवर की,
तलाश उस ईश्वर की,
जो इस नश्वर की,
खोज को अनवरत चल पाने दे।
संकेतों से बुलाये,
अपनी छाया में आने दे।