
काल नहीं कभी खण्डित होता,
चलता समगति, लय नहीं खोता,
नहीं कोई विराम, नहीं कोई विश्राम,
उसकी कोई दिशा नहीं, नहीं उसके कोई धाम,
निज को कभी नहीं दोहराता,
जो बीत गया नहीं फिर आता,
इसके मार्ग कभी लक्षित नहीं होते,
पग चिन्ह कहीं अंकित नहीं होते,
ज्ञात नहीं आरम्भ है इसका,
बीते का अवशेष ना मिलता।
तथ्य मात्र हैं, नहीं ज्ञान ये,
विचारूँ चाहे जितना ध्यान दे,
भ्रम से रहित नहीं चित्त होता।
काल नहीं कभी खण्डित होता।
जीवन हैं पर, खंड काल के,
पल, दिन, मास और साल ये,
जिनसे जीवन को चलना है,
है काल नहीं बस गणना है?
काल में जीते, काल है छूता,
नहीं कोई आयाम अछूता,
इसे जानने का दम्भ न पालें,
इसके दिये आशीष सम्हालें
जो कालखंड जिस अर्थ हमारे,
उनकी सुन्दरता उसी भाँति सवारें।
काल मात्र देता है अवसर,
बिन बंधन, बिन बाधित कर,
इसकी दृष्टि, कोई हीन नहीं,
और कोई महिमा मंडित नहीं होता।
काल नहीं कभी खण्डित होता।