जो बीता है

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क्षेम कुशल और नेह निमंत्रण नया-नया है,

जो बीता है कठिन, किंतु फिर भी अच्छा है,

स्मृति से जो चित्र उकेरूँ, रोष ना करना,

याद वही है आता जो कि बीत गया है।

आड़े-तिरछे जैसे भी सोपान बने थे,

पग धर उन पर ही हैं इस पल तक आये,

अरुचि, असहमति चाहे जितनी भी हो हम में,

सामर्थ्य उसी कल से है, हम कल के ही जाये।

नव्यता के उत्सव से क्यों बैर किसीको,

जीवन तो हर क्षण उत्सुक आह्वान इसी का,

पर समिधा बन जो भस्म हुआ हवन-यज्ञ में,

उस प्रत्यक्ष को क्या चाहिये प्रमाण किसी का?

होड़ श्रेय का सहज मानव दुर्बलता है,

किंतु लौ बनती जलते तेल और बाती ही से,

आज का जो भी, जितना भी सुन्दर है,

गढा गया है मात्र कल की माटी ही से।

इस कृतज्ञता से विहीन जब भी मन होगा,

सोचे जब कल उसका मूल्यांकन होगा,

उसके सारे श्रम और चिंतन का भी,

ऐसे ही हीन भावों से अवलोकन होगा।

सहानुभूति, सम्वेदना और भाव नमन के,

हों प्रस्तुत पहले, अतीत के विश्लेषण के,

प्रगति और उत्थान की निरंतरता की,

अक्षुण्णता संभव, मात्र एक श्रृंखलित बंधन से।

महिमा मंडन बिन उद्यम हो भले अरुचिकर,

मूलाधार से चिर कृतज्ञता का भाव सच्चा है।

क्षेम कुशल और नेह निमंत्रण नया-नया है,

जो बीता है कठिन, किंतु फिर भी अच्छा है।

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