
मेरे दिल के एक कोने में
अभी भी अंधकार है,
फिर भी हकीकत है कि
उस कोने से, मुझको बहुत प्यार है।
वह प्यार नहीं जो किसी सोते हुए
बच्चे को देख कर आता है।
वह प्यार भी नहीं जो किसी रोते हुए
बच्चे को देख कर आता है।
कुछ वैसा, जैसा सबकुछ खोते हुए
किसी आदमी को देख कर आता है,
जिसे पता भी न हो कि उसका सबकुछ
उससे हमेशा के लिये दूर हुआ जाता है।
हुआ कुछ यूँ है कि
बाकी जगहों को रोशन करने में,
इस कोने ने कभी रोका नहीं,
अंधेरे को अपने घर को भरने में।
क्या भान नहीं था कि इस अंधेरे से,
उसकी अपनी रोशनी गुम हो जायेगी?
या यह यकीन था इसके पीछे कि,
रोशनी बाँटने से बढती ही जायेगी।
बहरहाल मुझे अंधेरा तनिक भी
रास नहीं आता है,
पर इससे उस कोने से मेरा लगाव
तनिक भी कम नहीं हुआ जाता है।
अंधेरे से मेरी लड़ाई
बदस्तूर जारी है,
पर किसी को रोशन करने को,
खुद अंधेरे में रह पाने की अदा अब भी प्यारी है।
वह कोना एक और इल्म
मुझे देता है,
कि रोशनी कहीं भी हो,
कुछ तो रोशन होता है।
और समेट लेने से कहीं भी,
अंधेरा यकीनन कम होता है।
अगर फिर से मुझे अंधेरे-उजाले के
बँटवारे का सवाल कभी उलझायेगा,
अंधेरा सिमटेगा मेरे अंदर,
सिर्फ उजाला ही बाहर जायेगा।