
सुना कि वहाँ इन्सान जा नहीं पाते,
अब अच्छी नहीं लगती मुझको जन्नत की बातें,
पता नहीं वहाँ इन्सानियत है कि नहीं।
नायाब बहुत-सी चीजें होंगीं वहाँ पर,
रहनेवालों के जेहन में मासूमियत है कि नहीं।
तकलीफ नहीं कोई, मुसीबतें भी न होंगी,
गले लगाने का वहाँ भाईचारा है कि नहीं।
किसीको किसीकी जरूरत नहीं ना सही,
पर किसीने किसीको यूँ ही पुकारा है कि नहीं।
अदबो-आदाब से सब रहते होंगे यकीनन,
बेखुदी में बहका कोई कदम आवारा है कि नहीं।
जो नयी तहजीब की बात सोचे कोई तो,
ऐसे काफिरों का वहाँ होता गुजारा है कि नहीं।
सब अपने में मुतमइन होंगे माना,
फिर भी कोई शख्स फरियादी है कि नहीं।
जीने को नहीं कुछ करने की हो जरूरत,
पर कुछ कर पाने की आजादी है कि नहीं।
बड़े ही आराम से रहते होंगे सब महलों में,
घर से जुड़े घर की कहीं आबादी है कि नहीं।
जी करे तो बेवजह ही किसीके पास जाकर,
दिल की कहने सुनने की आजादी है कि नहीं।
वो बचपन, वो नादानी, तिलस्मों की दुनियाँ,
आसमान छू लेने की फितरत है कि नहीं।
नायाब बहुत-सी चीजें होंगीं वहाँ पर,
रहनेवालों के जेहन में मासूमियत है कि नहीं।