
क्या लिया यह बात बड़ी है, चाहे जो सौगात मिली,
बहुधा तिरस्कार में भी भावनाएँ फूली फली,
कभी कभी स्वीकार से लगती है परित्यक्ति भली,
ऋणता के भाव सारे, आज तुमको तिलांजलि।
बोझ-सी थी बन गयी, आकांक्षाएँ मन में पली,
धूप, छाँव, नमी और प्रश्रय माँगती कुसुमित कली,
निपट शून्यता में भी जी कर, जब वह अपने आप खिली,
वेदना से चेतना की यात्रा, तय कर अपनी राह चली।
भय, संशय, तृष्णा को करके जब आत्मसात चली,
दुविधा के घन हुए मनोरम, मन में दृढता बढी पली,
जिजीविषा ने जाना जीवन, मृत्यु लगी एक अंत भली,
सहसा यात्रा लक्ष्य बन गयी, और जिज्ञासा उत्तर पहली।
कर्म और जीवन मात्र हैं मेरे, शेष भ्रम और कही-सुनी,
धन-ऋण सारे मन के उपजे, क्या धरूँ भर अंजलि,नने
करता अपने भावों का अर्पण, कोई चाहे क्यों पुष्पांजलि,
ऋणता के भाव सारे, आज तुमको तिलांजलि।