सचमुच अच्छा लग रहा है

Photo by Pixabay on Pexels.com

आँखों से जो कुछ बह रहा है,

जमी हुई पीड़ा नहीं है,

मन मे जमा कुछ धुल रहा है,

अवरोध कलुष का घुल रहा है,

चित्त का अपना रंग अब जग रहा है,

सचमुच अच्छा लग रहा है।

किसी प्रमाद में, हठ में,

सरल क्षणों में,

या स्थिति किसी विकट में,

सहज संयम को हार कर,

अपनी मर्यादा को पार कर,

जब भी मैं ने अभिमान किया है,

मलिनता की एक परत चढ गयी,

जिन्दगी तो अपनी राह बढ गयी,

पर बोध उस क्षण का अबतक रहा है।

फिर आज सचमुच अच्छा लग रहा है।

किसी विपत्ति में, भावों की हीनता में,

लक्ष्य के संधान को,

प्राण रक्षा में, सामर्थ्य की विहीनता में,

स्वाभिमान को मार कर,

पराजय अपनी स्वीकार कर,

जब भी मैं ने अपमान पिया है,

विषाद हृदय में बैठ गया है,

बहुत गहरे तक पैठ गया है,

विषाद पतन का अबतक जग रहा है।

फिर आज सचमुच अच्छा लग रहा है।

किसी तर्क से, किसी युक्ति से, विपत्ति में,

अधिकारों का अतिक्रमण किया है,

प्राप्त किसी सिद्धि को करने,

मानवता का हनन किया है,

आत्मा की शुचिता को भग्न कर,

छद्म को प्रयासों में संलग्न कर,

जब भी कोई अभियान लिया है,

मन में तंतु अवरुद्ध हो गये,

बहुत से मेरे परिचय सो गये,

अन्याय का यह आघात सबसे अलग रहा है।

फिर आज सचमुच अच्छा लग रहा है।

आँखों से जो कुछ बह रहा है,

आत्मबोध है, कृतज्ञता है,

भाव हो प्रेम का पृथुल रहा है,

संकुचन आज मन का खुल रहा है,

चित्त हो जैसे सजग रहा है।

सचमुच अच्छा लग रहा है।

Published by

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s