
पंख खोले डाल पर पंछी ,
उड़ने को तैयार,
पहली बार,
क्या सोचता है?
उसके मन किन भावों का होता है संचार ?
दिगंत तक फैला नीला नभ,
मनोरम,
पर विशालता में भयप्रद,
करता मुझे हतप्रभ।
सर्वव्यापी अदृश्य पवन,
मुझे छू_छू कर जाता,
कभी सहलाता, कभी उत्प्लावित कर जाता,
उड़ान का आधार,
संग ही करता भय का संचार।
वात्सल्य से करती विभोर धरा,
हर पल खींचती अपनी ओर धरा,
इस ममता में सम्मोहन है,
पर चाहे जितनी बार विचारूँ,
इस आकर्षण में आशंका है, बंधन है।
पर इस सबसे ऊपर,
बहुत गहरे, मर्मस्थल के अंदर,
प्रश्न बहुत ही सरल, सालता,
क्या सचमुच मैं उड़ पाऊंगा?
आकांक्षाओं से जुड़ पाऊंगा?
उठा न पाया यदि अपना ही भार,
क्या सह पाऊंगा सारी सृष्टि का तिरस्कार?
बस एक किरण,
बस एक पवन,
बस एक ध्वनि या एक शब्द,
एक दृष्टि या एक स्पर्श,
एक संकेत या परामर्श,
रचते उस पंछी का प्रारब्ध।
गगन, पवन और समग्र धरा,
हैं भाग जिस अद्भुत रचना के,
तुम चेतन हो, तुम अंश हो,
उसी समेकित विश्व चेतना के।
मात्र याचक नही नत याचना में,
उन्नत पराक्रम के ग्राहक हो,
संशय हो किंचित भी नहीं
इस दुर्धर्ष सृष्टि के क्रम वाहक हो।
नहीं बाट जोहना समता की,
न दया भाव, नहीं ममता की,
विश्वास अडिग, संकल्प प्रबल,
जागृति करते हर क्षमता की।
कर्तव्य भी, अधिकार भी,
स्वभाव भी, व्यवहार भी,
मात्र नियति नहीं है उड़ना,
है तेरा लक्ष्य, साधना साकार भी।
हास नहीं, उपहास नहीं,
लांछना नहीं धिक्कार नहीं,
तू स्वतंत्र, तेरे अनुमति बिन,
छू सकता कोई तिरस्कार नहीं।
असफलता है घटना कलंक नहीं,
प्राण रहा, फिर खेलोगे तुम,
प्रयास से पलायन का जीते जी,
पातक क्योंकर झेलोगे तुम?
कभी हल्की एक सिहरन मन की,
कभी स्वप्न अनजाने कल के,
सबको मिलती है अपनी ‘गीता’
अपनी राह बनाकर चलते।
पंख खोले डाल पर पंछी ,
उड़ने को तैयार,
कृतसंकल्प,
उड़ेगा सीमाओं के पार।
अति सुंदर 👌👌
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धन्यवाद।
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