
पेड़ों के संग पत्तों को भी खुलकर हँसना आ गया।
मौसम बौरा गया।
बंध टूटे,
छंद टूटे,
उन्मुक्त स्वर कोई गा गया।
मौसम बौरा गया।
पागलपन ऐसा ही कुछ ढूँढा हम सब करते हैं,
मिलता है तो नहीं पहचानने का,
स्वांग अकारण भरते हैं।
जैसे रहस्य यह खुला हृदय में
बिन कारण यह जग भा गया।
मौसम बौरा गया।
पैर के जकड़न गौर से देखे,
पंखों के बंधन के सरीखे,
अपने बांधे गाँठ अधिक है,
अहंकार के भार से कसते।
अक्सर बच्चों की भाँति हुलसना,
कर मन को है हरा-भरा गया।
मौसम बौरा गया।
पत्थर से पत्थर नहीं मापना,
बाहर छोड़ भीतर झाँकना,
पद चिन्हों के अनुगमन से उत्तम,
चाहे वह पगडंडी ही हो,
अपनी खुद की राह आंकना।
अनछुए वनों का पहला प्रशस्त पथ,
का अपना होना,
सृजन का सुख मन को छुला गया।
मौसम बौरा गया।
सभी अलग फिर भी समान सब,
हर सर उन्नत, करुण हृदय हों,
बाहु पराक्रम तेज भाल पर,
स्वप्न नयन में, भाव सदय हों।
शायद ऐसी सृष्टि रचने का,
लगता है अवसर आ गया।
मौसम बौरा गया।
अप्रतिम!!
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