
शायद जरूरत भी नहीं है ,
और मैं दुनियाँ को बदलने का
दावा नहीं करता,
जमीन से थोड़ा ऊपर चलने का
दिखावा नहीं करता,
कोशिश बस इतनी है कि
कोशिश में कमी ना रहे,
थोड़े-से ही बदलें सही,
हाले-सूरत ऐसी ही बनी ना रहे।
जो अच्छा है, कयों अच्छा है
मालूम हो मुझे,
जो अच्छा नहीं, कयों अच्छा नहीं
बात छुपी ये ना रहे।
भूख का है इल्म मुझको,
इससे कोई समझौता नहीं,
वजह बहुत से और भी हैं,
आँसुओं के बहने के।
सारे आँसू पोंछ डालूँ
शायद हो मुमकिन नहीं,
पर किसी को हक न हो कि,
वह किसी को चोट दे।
मुस्कुराना लगता है अच्छा,
जैसे तुम्हें वैसे मुझे,
चाहता हूँ जब जो चाहे,
खिलखिला कर हँस सके।
वक्त बहुत लग जायेगा,
है इसका डर मुझको भी पर,
आँसू नहीं रुके हैं किसीके,
हँसी किसी की छीन के।
जो करूँ जैसा करूँ
अब सब तुम्हारे हाथ है,
बस इतनी दुआ दे कि,
ना हिलूँ कभी यकीन से।
शुक्रिया।🙏
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