आवरण

close up photo of rose quartz
Photo by Karolina Grabowska on Pexels.com

खिंचाव उतना ही बढता है,

आवरण जितना महीन होता है,

और ऐसे में नजर झिलमिलाती है,

सोच ठहर जाती है,

अपनी ही समझ पर,

कहाँ खुद को भी पूरा यकीन होता है।

 

हिम्मत,

जैसे हैं वैसे दिखने की,

गिरवी रख दी, बहुत पहले,

हमने एक दिन,

जब कहा किसी को अपना,

और किसीसे कि रह लेंगे तेरे बिन।

 

छुपाये रखना बहुत कुछ,

अब अदा नहीं रहा,

हमारे हकों में शुमार है,

हैरत की बात है लेकिन,

कि हर किसी से खुलेपन की

उम्मीद हमारी अब भी बरकरार है

 

कोई गफलत नहीं,

कि हम सर से पाँव तक,

अलग-अलग रंगों में रंगे पुते हैं,

और जहाँ रंगे नहीं हैं,

कई-कई पर्दों में ढके हुए हैं।

दम यह फिर भी भरते हैं,

कि हम जैसे बाहर हैं,

बिल्कुल वैसे ही अंदर हैं।

 

बात यदि यहीं तक होती,

तो शायद फिर भी कुछ होती।

हम

सब कुछ जानने वहम रखते है,

खिलाफ जिसके सारा जंग था,

मुड़-मुड़ के उन्ही राहों पर कदम रखते हैं।

 

इतना रंज इसलिये

कि औरों ने हमको सही नहीं माना।

सच तो दरअसल यह है कि

अपनी जिद में हमने तुम्हे नहीं जाना।

 

आओ

एक ईमानदार शुरुआत करें,

लकीरें खींचना छोड़ दें,

और इस भूल भुलैय्या से बाहर निकलें।

यकीन मानो

दुनियाँ लकीर के दोनो ओर एक-सी है,

फर्क सिर्फ इस बात का है कि

लकीर कहाँ है और हम कहाँ खड़े हैं,

क्यौंकि गलत हो कर भी खुदको

सही साबित करनेवाला सचमुच जहीन होता है।

खिंचाव उतना ही बढता है,

आवरण जितना महीन होता है।

Published by

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s