मन के
संकेत सुनूँ,
या मन का
हठ सुनूँ?
चुनना यदि हो निश्चित,
तो किसे चुनूँ?
संकेत नव्यता का संधान,
हठ यथास्थिति मूर्तमान,
हूँ ऋणि श्रिष्टि का कोटि कोटि,
क्या वर्तमान का बंदी मैं बनूँ?
मन के संकेत सुनूँ, या हठ को सुनूँ?
संकेत गतिमान उद्वेगशील,
हठ अति मनोरम शांत सलिल,
गति त्याग सौन्दर्य धरूँ,
तो मैं जो हूँ वह क्यौं मैं हूँ?
मन के संकेत सुनूँ, या हठ कोसुनूँ?
संकेत विध्वंश उपरांत सृजन,
हठ प्रिय पार्श्व कसता बंधन,
आलिंगन के सुख जितने चाहे,
नव सर्जन का क्या हंता मैं बनूँ?
मन के संकेत सुनूँ, या हठ को सुनूँ?
संकेत अनिश्चितता, अखंड विस्तार,
हठ शक्ति, सुरक्षा के सहज उद्गार,
समृद्धि में सीमित मुदित रहूँ,
या यायावर बन जीवन धन्य करूँ?
मन के संकेत सुनूँ, या हठ को सुनूँ?
संकेत नियमों से ऊपर उठकर,
हठ उनका सबसे प्रबल पक्षधर,
नवल शोध, समीकरण, आयाम,
या बँध धूरी से वृत्ताकार घूमूँ?
मन के संकेत सुनूँ, या हठ को सुनूँ?
संकेत मुझे दो तुम हठ लेलो,
कुछ मैं झेलूँ, कुछ तुम खेलो,
तुम समगति बनाये रखना, जब तक
मैं अज्ञात लोक की झलक ले लूँ।
मेरी विनती सुन कि मैं संकेत सुनूँ?