कहीं निहित है सार्थकता,
या अंतहीनता में विलुप्त हुआ,
निमित्त मात्र, या हूँ एक कर्ता,
हूँ विशवरूप या निरर्थकता?
प्रश्न बहुत से और कई,
कुछ मूर्त और कुछ निराकार।
चेतना इन सब का उद्गम,
या विवेक इनका आधार?
सब कुछ सम सा,
पहली लौ से छँटते तम सा,
नि:शब्द धरा, नि:शब्द प्राण,
नहीं कोई प्रश्न, ना समाधान,
ऐसे में कहाँ से उठती हैं,
संवेदनाये ये निर्विकार?
मन के किस गह्वर में हैं,
रचे-बसे इनके आधार?